गुल खिले थे चांदनी में
वे नज़ारे बन गए
जब सुहानी रात आई
तो सितारे बन गए
***
हमसफ़र बनने को आए
वो हमारी राह में
दे सके मंज़िल न हमको
पर हमारे बन गए
***
क्यों मेरे ज़ज्बों की दुनिया
यूँ उड़ाती है हँसी
ज़िंदगी के सारे ग़म
मुझको दुधारे बन गए
***
दिल में रहकर भी हमारे
हमसफ़र न बन सके
अनगिनत इस ज़िंदगी के
अब किनारे बन गए
=======================
साभार - डॉ.मनुप्रताप सिंह की रचना
वे नज़ारे बन गए
जब सुहानी रात आई
तो सितारे बन गए
***
हमसफ़र बनने को आए
वो हमारी राह में
दे सके मंज़िल न हमको
पर हमारे बन गए
***
क्यों मेरे ज़ज्बों की दुनिया
यूँ उड़ाती है हँसी
ज़िंदगी के सारे ग़म
मुझको दुधारे बन गए
***
दिल में रहकर भी हमारे
हमसफ़र न बन सके
अनगिनत इस ज़िंदगी के
अब किनारे बन गए
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साभार - डॉ.मनुप्रताप सिंह की रचना
4 comments:
वाह डॉ. साहब वाह बहुत ही रवानगी लिए हैं आपकी रचना! मेरी बधाई!
सून्दर प्रयास। बहुत बहुत बधाई
हमसफ़र बनने को आए
वो हमारी राह में
दे सके मंज़िल न हमको
पर हमारे बन गए
***
waah behtarin
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने , मुझे तो पसंद आई.
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