पिछले साल
ठीक आज की तारीख़
मैंने कैसे गुज़ारी थी
साल भर बाद
आज की तारीख़ का जीवन भी
संभवतः याद न रहे
क्या जीवन
याद न रहने वाली तारीखों
और घटनाओं के बीच
चुपचाप गुज़र रहा है !
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'सहसा कुछ नहीं होता' संग्रह में
श्री बसंत त्रिपाठी की रचना साभार.
Sunday, April 5, 2009
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3 comments:
डाक्टर साहब, दिमाग के कम्प्यूटर में विस्मृति का सोफ्टवेयर लोड है। वह महत्वहीन को मिटा देता है। यह स्मृति के लिए जरूरी भी है।
आज का जीवन ही जीवन है, गुजर गया सो गुजर गया। भविष्य केवल कल्पना है।
Bahut sahi kaha...Dwiwedi ji ki baat main bhi kahna chaah rahi thi.
डॉ.साहब।
भूलना मानव का स्वभाव है।
इसी का नाम तो जिन्दगी है।
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