Friday, April 10, 2009

फूलों वाले रिश्ते...!


निकल जाए कांटा, काँटे से

फिर भी कभी न भूलें हम

फूलों वाले रिश्तों को

काँटों से कभी न तौलें हम

शब्दों में मीठापन चाहे

मत घोलें पर याद रहे

अन्तर आहत करने वाली

वाणी कभी न बोलें हम

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6 comments:

Udan Tashtari said...

उम्दा सीख!!

अनिल कान्त said...

बहुत सही कहा आपने

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

निर्मला कपिला said...

kaabile tareef hai

mehek said...

execelant

Anil Pusadkar said...

याद रखेंगे डा साब्।

अजित वडनेरकर said...

अन्तर आहत करने वाली

वाणी कभी न बोलें हम


आपकी वाणी पसंद आती है हमें, क्योंकि यह अन्तर को तर कर देती है...