Monday, April 13, 2009

शेर हैं तो सियार भी हैं...!

रोगियों को दवाओं और डाक्टरों का सहारा है,
छात्रों को गाइडों और मास्टरों का सहारा है।
महत्वाकांक्षी नेताओं और प्रचारकों को,
अपने-अपने पिट्ठुओं और पोस्टरों का सहारा है।।
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एक ही वन में शेर हैं तो सियार भी हैं,
एक ही वृक्ष पर कौवा हैं तो मराल भी हैं।
एक ही मन में अवगुण हैं तो गुण भी हैं,
एक ही देश में रेगिस्तान है तो नैनीताल भी है।।
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अपने ही स्वभाव से इंसान प्यारा बन जाता है,
अपने ही स्वभाव से इंसान खारा बन जाता है।
एक ही पिता के दो पुत्रों में से,
एक बादशाह तो दूसरा आवारा बन जाता है।।
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मणिप्रभ सागर जी के मुक्तक 'प्रतिध्वनि' से साभार.

5 comments:

Hari Joshi said...

शानदार मुक्‍तक पढ़वाने के लिए आभार।

Unknown said...

बहुत खूब ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"एक ही पिता के दो पुत्रों में से,
एक बादशाह तो दूसरा आवारा बन जाता है।।"
बहुत सुन्दर, डा. चन्द्रकुमार जैन जी।
पाँचों अंगुलियाँ समान नही होती,
लेकिन प्यार तो सभी से होता है।
अंगुलियाँ टेढ़ी करने की जरूरत न
पड़े तो अच्छा है, क्योंकि-
‘‘प्यार इन्सान को इन्सान बना देता है,
प्यार पत्थर को भी भगवान बना देता है।’’

नीरज गोस्वामी said...

विरोधाभास जीवन के हर क्षेत्र में है...बहुत अच्छी रचना...आभार पढ़वाने का.
नीरज

Alpana Verma said...

अपने ही स्वभाव से इंसान प्यारा बन जाता है,
अपने ही स्वभाव से इंसान खारा बन जाता है।
एक ही पिता के दो पुत्रों में से,
एक बादशाह तो दूसरा आवारा बन जाता है।।

-बहुत ही सही लिखा गया है.
जीवन के दो विपरीत पहलुओं का परिचय कराते मुक्तक.[पढ़वाने के लिए आभार]