श्री बसंत त्रिपाठी की कविता...
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जब तक माँ है
पिता हैं जब तक
तब तक रहेगा याद
अपने बचपन का नाम
बहुत दिन बाद
जब सुनेंगे
इससे मिलती जुलती ध्वनि
तो चौंक उठेंगे
और जोर डालकर याद करेंगे
उससे अपना जुड़ाव
हमें पता भी न चलेगा
और खो देंगे बचपन का नाम
जैसे बचपन का चेहरा।
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'सहसा कुछ नहीं होता' संग्रह से साभार
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जब तक माँ है
पिता हैं जब तक
तब तक रहेगा याद
अपने बचपन का नाम
बहुत दिन बाद
जब सुनेंगे
इससे मिलती जुलती ध्वनि
तो चौंक उठेंगे
और जोर डालकर याद करेंगे
उससे अपना जुड़ाव
हमें पता भी न चलेगा
और खो देंगे बचपन का नाम
जैसे बचपन का चेहरा।
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'सहसा कुछ नहीं होता' संग्रह से साभार
2 comments:
माँ और पिता ही तो हैं,
जो आज भी पुकारते हैं मुझे
मेरे बचपन के नाम से!
उतनी ही मिठास भरकर
बोली में
और
उतनी ही ममता भरकर
आँखों में!
bahut sundar kavita.
lekin bachpan kahan bhul paatey hain!
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