१
काग़ज़ के घर में/
कलम ने रची एक कथा
उसने सूर्य को लिखा सूर्य
चंद्रमा को चंद्रमा/
पृथ्वी को पृथ्वी
उसने सोचा और बनाया एक ईश्वर
उसमें भरी करुणा,ममता,बल/
अहंकार,मत-मतान्तर,हत्या और मृत्यु
एक राजा एक पुजारी और ढेर सारे दास
२
कागज़ पर एक दिन
तितली की तरह बैठ गई कलम
उसके रंग बोल रहे थे
उसकी आभा हँस रही थी
उसके प्रत्युत्तर में
कागज़ से आने लगी खुशबू
वहाँ एक सुंदर फूल था
हिलते हुए फूल पर तितली भी हिलती
यहीं से शुरू होती है कविता।
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युवा कवि अरुण देव की रचना.
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित संग्रह
'क्या तो समय' से साभार.
Saturday, April 18, 2009
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4 comments:
'कागज़ पर एक दिन
तितली की तरह बैठ गई कलम
उसके रंग बोल रहे थे
उसकी आभा हँस रही थी...
adbhut!
bahut hi sundar kavita!
ADBHUT RACHANA.BAHOT BADHAAYEE...
ARSH
दोनों अत्यन्त सुंदर कविताएँ।
आभार डाक्साब अरूण जी रचनायें पढने का मौका देने के लिये
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