समुन्दर इतना उबलेगा
किसे मालूम था पहले
किसी का दम यूँ निकलेगा
किसे मालूम था पहले
कभी पत्थर पिघलता था
किसी की आह से घायल
मगर इंसां न पिघलेगा
किसे मालूम था पहले
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श्री आर.पी.'घायल' की रचना साभार.
Friday, June 12, 2009
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4 comments:
सही बात कर दी आपने......किसे मालुम था पहले इंसान पिघलते नही है......खुबसूरत रचना
चंद शब्दों मे सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्
कभी पत्थर पिघलता था
किसी की आह से घायल
मगर इंसां न पिघलेगा
किसे मालूम था पहले
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!
किसी की आह से घायल
मगर इंसां न पिघलेगा
किसे मालूम था पहले
-khoob likha hai!
achchee rachna
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