Friday, July 24, 2009

डरने से क्या हल निकलेगा ?

डरने वाले कब दुःख की
काली रातों से जूझ सके हैं

सुखी वही हो पाए मर्म

दुखों का जो भी बूझ सके हैं

इतना भी नाकाफ़ी है कि

डर मन को बरबस न सताए

डर से भी अच्छा कुछ है हम

ख़ुद से क्या यह पूछ सके हैं ?

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7 comments:

mehek said...

डर मन को बरबस न सताए

डर से भी अच्छा कुछ है हम

ख़ुद से क्या यह पूछ सके हैं ?

sachhi baat bahut khub

Mithilesh dubey said...

डर से भी अच्छा कुछ है हम

ख़ुद से क्या यह पूछ सके हैं
bahut khub

"अर्श" said...

HAMESHAA KI TARAH KHUBSURAT JAIN SAHAB BAHOT BAHOT BADHAAYEE IS NAAYAAB RACHANAA KE LIYE



ARSH

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब....हमेशा की तरह...बधाई इस अनुपम रचना के लिए.
नीरज

ओम आर्य said...

atisundar ........badhaaee

RAJNISH PARIHAR said...

सच में हर हालत में सामना करना चाहिए ....

मुकेश कुमार तिवारी said...

चन्द्रकुमार जी,
उम्मीदों के पंख लगाती हुई रचना, सिखा जाती है कि जीवन संघर्ष में निराशाओं का कोई स्थान नही\

सार्थक रचना,

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी