अन्तिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ
एक वृक्ष जाएगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर
साथ जाएगा एक वृक्ष
अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले
'कितनी लकड़ी लगेगी ?'
श्मशान की टालवाला पूछेगा
गरीब से गरीब भी सात मन तो लेता ही है
लिखता हूँ अन्तिम इच्छाओं में
कि बिजली के दाह घर में हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे बाद
एक बेटे और एक बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।
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कवि श्री नरेश सक्सेना की कविता साभार
Monday, July 27, 2009
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6 comments:
दिलो दिमाग पिघलकर .....मोम की भांति कही उस परमात्मा की खोज करने लगा है ......इन लकडियो को बचाने के बाद आखिर तो उसी से रु ब रु होना है .........आत्मा को छू गयी .....आप एक लम्बी जीवन के मालिक बने यही आत्मा से दुआ निकलती है ....बहुत ही अच्छी सोच है आपकी...
आपकी बहुत अच्छी सोच है ...
सुन्दर संदेश, मित्र.
वाह बहुत सुंदर विचार हैं आपके ...काश सभी ऐसा ही सोचते
लाजवाब रचना...शब्द हीन हो गया हूँ...
नीरज
अत्यन्त सुंदर और शानदार रचना के लिए बधाई!
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