उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफर मैंने किया
तू तो नफ़रत भी न कर पायेगा उस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझसे बेख़बर मैंने किया
कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचोख़म
ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया
शोहरतों की नज़र कर दी शेर की मासूमियत
इस दीये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया
चंद ज़ज़्बाती से रिश्तों को बचाने को वसीम
कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ===============================
वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल साभार.
4 comments:
कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचोख़म
ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया
बरेलवी साहब की ये उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने का शुक्रिया डाक्टसाब। और तस्वीर भी नायाब ढूंढी है ...
waah behtareen... bahut-bahut aabhar.... jain saab
BAHUT HI SUNDAR RACHANA .....KHUB
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
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