Tuesday, July 28, 2009

किताबों का सफ़र मैंने किया....!

क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया

उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफर मैंने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पायेगा उस शिद्दत के साथ

जिस बला का प्यार तुझसे बेख़बर मैंने किया

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचोख़म

ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया

शोहरतों की नज़र कर दी शेर की मासूमियत

इस दीये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया

चंद ज़ज़्बाती से रिश्तों को बचाने को वसीम

कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ===============================

वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल साभार.

4 comments:

अजित वडनेरकर said...

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेचोख़म
ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया

बरेलवी साहब की ये उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने का शुक्रिया डाक्टसाब। और तस्वीर भी नायाब ढूंढी है ...

सागर said...

waah behtareen... bahut-bahut aabhar.... jain saab

ओम आर्य said...

BAHUT HI SUNDAR RACHANA .....KHUB

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
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