उसी दिन सारी दुनिया में अलग ही शान हो जाए
ये सुख-दुःख, लाभ-हानि, कुछ नहीं बस फेर है मन का
सबब इन सब का क्या है जिस घड़ी ये ज्ञान हो जाए
फ़रक छोटे बड़े का भी बहुत तकलीफ देता है
सहज समभाव बन जाए विलग अभिमान हो जाए
जो हम सब एक हों अपना-पराया कौन रह जाए
नहीं कुछ भी कहीं अन्तर अगर संज्ञान हो जाए
जो दुनिया चल रही है तो चलाने वाला भी होगा
अगर जग के नियंता का जरा भी भान हो जाए
कोई भी कामयाबी छुप नहीं पाती छुपाने से
बिना बोले ही सत् की बात कानों कान हो जाए।
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डॉ.बी.पी.दुबे की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
6 comments:
Khud se pahchaan jaroori hai.
Think Scientific Act Scientific
कभी तो देखो आईने को कि आइना कभी झूठ नहीं बोलता
बहुत ही खुबसूरत बात कही है आपने ............इस रचना के माध्यम से .....बधाई
जो हम सब एक हों अपना-पराया कौन रह जाएनहीं कुछ भी कहीं अन्तर अगर संज्ञान हो जाए
bahut hi sachhi sahi baat keh di,sunder rachana.
Bhut hee sunder jeewan darshan ko ujagar karatee ye aapkee gajal bahut man bhayee.
Bahut
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