Saturday, August 29, 2009

मेरा क्या...!

बेटा ओम
मत आना
क्या करेगा यहाँ आकर
आने-जाने का खर्च बचेगा
तेरे बच्चे के कपड़े आ जायेंगे
जानती हूँ
रिक्शा चलाते-चलाते
तुझे टीबी हो गई है
पहले अपना इलाज़ करा
मेरा क्या...
बूढ़ी काया
चिंता मत करना
पुराने पड़ोसियों में नेम-धरम है...!
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विषपायी की कविता 'नई दुनिया' से साभार प्रस्तुत.

7 comments:

ओम आर्य said...

मार्मिक रचना........

अमिताभ मीत said...

ओह जैन साहब. क्या बात कही है ... और किस आसानी से !! जवाब नहीं.

वैसे आप से एक शिकायत भी है.... कई कई दिन गायब कहाँ हो जाते हैं ?

रज़िया "राज़" said...

ज़िन्दगी की हकीकत को बख़ुबी दिखाया है आपने। धन्यवाद।

परमजीत सिहँ बाली said...

मार्मिक रचना.

सागर said...

बहुत ही कमल की कविता है... इन दिनों हम एक रेडियो प्रोग्राम बना रहे हैं... प्रवासी नौजवानों पर... उससे यह बिलकुल मेल खता है... बहुत ही यथार्थ कविता... शुक्रिया रु-बा-रु.. करने के लिए

हरकीरत ' हीर' said...

जानती हूँ
रिक्शा चलाते-चलाते
तुझे टीबी हो गई है
पहले अपना इलाज़ करा
मेरा क्या...
बूढ़ी काया
चिंता मत करना
पुराने पड़ोसियों में नेम-धरम है...!

क्या बात है .....!!

रंजना said...

Ohh !!

Kya kahun....

Aabhaar aapka.