इस दुनिया की
जो छवि है मेरे भीतर
उसमें एक स्त्री के वक्ष की तरह
थामे हुए हैं उसे
नन्हे शिशु हाथ।
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प्रेम रंजन अनिमेष की पंक्तियाँ साभार.
जो छवि है मेरे भीतर
उसमें एक स्त्री के वक्ष की तरह
थामे हुए हैं उसे
नन्हे शिशु हाथ।
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प्रेम रंजन अनिमेष की पंक्तियाँ साभार.
6 comments:
वाह.....।
कितना सुन्दर परिकल्पना है।
अद्भुत कल्पना है...वाह...
नीरज
वाजिब सोच... और उदार भी... vv
खुबसूरत सोच ......
मां का स्वरुप ही तो है यह धरती, बहुत सुंदर रचना.
धन्यवाद
चित्र और कविता एकाकार हो गये
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