अपना कार्टून देखते हुए
उसे याद आया
यह उसका कल शाम साढ़े चार बजे वाला चेहरा है
उस वक़्त एक जन सभा को संबोधित करते हुए
उसकी आँखें एक लोमड़ी की तरह
चमक रही थीं
और जब उसने कहा, 'प्यारे भाइयों'
तब उसकी जीभ काफी बाहर
निकल आयी थी
जिसे देख पाया सिर्फ़ एक कार्टूनिस्ट
जनसभा को संबोधित करने के बाद
उसे एक खाल में घुस जाना पड़ा
खाल से बाहर वह गर्मजोशी से
मुक्के भांज रहा था
खाल के भीतर
थर-थर काँप रही थी उसकी आत्मा
फ़िर उस खाल से निकला
और दूसरी में घुस गया
रात के दस बजे तक
उसने चार खालें बदली थीं
कार्टून देखते हुए
उसने अपने असली चेहरे के बारे में सोचा
दिमाग पर जोर देकर
याद करने की कोशिश की
उसका असली चेहरा कहाँ है
कब और कहाँ उसने
अपना चेहरा उतार कर रख दिया था
वह व्यग्र हो उठा
और जोर-जोर से
अपना नाम पुकारने लगा
तभी अचानक उसे ख़याल आया
कहीं उसे देख तो नहीं रहीं
यहाँ की कार्टूनिस्ट आँखें
उसे याद आया
यह उसका कल शाम साढ़े चार बजे वाला चेहरा है
उस वक़्त एक जन सभा को संबोधित करते हुए
उसकी आँखें एक लोमड़ी की तरह
चमक रही थीं
और जब उसने कहा, 'प्यारे भाइयों'
तब उसकी जीभ काफी बाहर
निकल आयी थी
जिसे देख पाया सिर्फ़ एक कार्टूनिस्ट
जनसभा को संबोधित करने के बाद
उसे एक खाल में घुस जाना पड़ा
खाल से बाहर वह गर्मजोशी से
मुक्के भांज रहा था
खाल के भीतर
थर-थर काँप रही थी उसकी आत्मा
फ़िर उस खाल से निकला
और दूसरी में घुस गया
रात के दस बजे तक
उसने चार खालें बदली थीं
कार्टून देखते हुए
उसने अपने असली चेहरे के बारे में सोचा
दिमाग पर जोर देकर
याद करने की कोशिश की
उसका असली चेहरा कहाँ है
कब और कहाँ उसने
अपना चेहरा उतार कर रख दिया था
वह व्यग्र हो उठा
और जोर-जोर से
अपना नाम पुकारने लगा
तभी अचानक उसे ख़याल आया
कहीं उसे देख तो नहीं रहीं
यहाँ की कार्टूनिस्ट आँखें
उसने अपने को संभाला
उसने उसी तरह मुस्कुराने की कोशिश की
जैसे कल रात साढ़े नौ बजे मुस्कुराया था
एक प्रीतभोज में।
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संजय कुंदन की कविता साभार प्रस्तुत.
5 comments:
bahut khoob
funtastic
thanks
छील कर रख दिया जनाब, संजय कुंदन को मुबारकबाद... !
कोटिश धन्यवाद आपको इस अद्भुत रचना को हम तक पहुँचाने के लिए...
नीरज
आप ने तो शव्दो से इतना सुंदर कार्टून बना दिया, बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद
वाह ! वाह ! वाह ! लाजवाब !!! क्या बात कही वाह !!
इस यथार्थपरक सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आभार...
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