Friday, September 18, 2009

ये नदी कैसे पार की जाए....!

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
मौत का ज़हर है फिज़ाओं में
अब कहाँ जा के साँस ली जाए
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए
मेरे माज़ी के ज़ख्म भरने लगे
आज फ़िर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाए
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राहत इन्दौरी साहब की ग़ज़ल साभार.

3 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाए

आह-हा, बहुत खूब ! सुबह सुबह ही दिल खुश हो गया, प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद !

M VERMA said...

ये नदी कैसे पार की जाए"
बहुत सुन्दर ==
मै तो चला दुश्मनो से राय लेने

रंजना said...

वाह...लाजवाब....पढ़ते समय वह कर्णप्रिय स्वर स्वतः ही कानो में बजने लगा,जिसमे इस ग़ज़ल को सुना था...

पढ़वाने के लिए आभार..