दिन अगर है दिन ही लिख गर रात है तो रात लिख
मैं समझता हूँ मोहब्बत का हर एक ग़म और फरेब
मुझको अपनी दास्तां लिख दिल के सब ज़ज़्बात लिख
क़ैद हैं तेरे भी दिल में सैकड़ों ग़ज़लें कहीं
आ कलम क़ागज़ उठा लिखने की कर शुरूआत लिख
एक आँसू ज़िंदगी है एक आँसू मौत है
ज़िंदगी की बूँद लिख और मौत की बरसात लिख
यूँ न कर दुनिया की बातें दर्द को होंठों पे ला
दिल में है ग़म का समंदर तू उसी की बात लिख
तू मुझे अच्छा बना मेरी बुराई कह मुझे
दोस्त है तो दे मुझे ऐसी कोई सौगात लिख
आज भी मातम जहाँ है ज़िंदगी वीरान है
जा उन्हीं के झोपड़ों में उनके भी हालात लिख
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श्री राजमोहन चौहान की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत
5 comments:
क़ैद हैं तेरे भी दिल में सैकड़ों ग़ज़लें कहीं
आ कलम क़ागज़ उठा लिखने की कर शुरूआत लिख
bahut sunder gazal share ki hai aapne
Shukriya
तू भी मेरी ही तरह कुछ अपने दिल की बात लिख
दिन अगर है दिन ही लिख गर रात है तो रात लिख
जबाब नही जनाब आप की कलम का, बहुत सुंदर ओर एक सची कविता के लिये आप का धन्यवाद
तू मुझे अच्छा बना मेरी बुराई कह मुझे
दोस्त है तो दे मुझे ऐसी कोई सौगात लिख
बहुत खूब। हर शेर पर वाह! है। हम तो सिर्फ इतना कहेंगे-
कारोबारे-जिंदगी का फ़लसफ़ा समझा दिया
फ़ानी-दुनिया की कोई भूली हुई सी बात लिख
बेहद सुन्दर गज़ल!
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....padhwane के लिए आपका आभार..
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