रह जाए टूटकर कोई ऐसा न बोलिए
ताला है दिल तो प्यार की चाबी से खोलिए
ख़ुद का कमाल देखना चाहें तो आप भी
चेहरे के हाव-भाव में मुस्कान घोलिए
खुशियाँ मिलीं तो प्यार में सबमें वो बाँट दीं
ग़र ग़म मिले तो बैठ के चुपचाप रो लिए
रहजन मिले हैं बारहा रहबर की शक्ल में
वो हम न थे जो रहजनों के साथ हो लिए
ऊँचाइयों के बाद ढलानें तो आएंगी
'कौशल' जरा सी बात पे इतना न डोलिए
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श्री मुकुंद कौशल की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.
Tuesday, March 23, 2010
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1 comment:
ख़ुद का कमाल देखना चाहें तो आप भी
चेहरे के हाव-भाव में मुस्कान घोलिए
बढ़िया ग़ज़ल।
हम भी कोशिश करेंगे..
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