Saturday, April 17, 2010

है जान वहीं अफ़साने में...!

चर्चा है दो ही बातों का, मेरी उम्र के सारे फ़साने में
कुछ दिन तेरी राहों में गुजरे, कुछ बीत गए मयखाने में
दुखड़ों का ज़िक्र बयां ग़म का, दिलचस्प है यूं तो किस्सा मेरा
आया है जब भी नाम तेरा, है जान वहीं अफ़साने में।
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नसीम नारवी के अशआर साभार.

1 comment:

Shekhar Kumawat said...

आया है जब भी नाम तेरा, है जान वहीं अफ़साने में।



bahut khub



shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/\