कोरा दंभ
जीवन निरालम्ब
अंध -स्पर्धा
शर्म बेपर्दा
बेबूझ अज्ञान
सहयात्री से अंजान
भ्रांत -अवधारणा
एकाकी विचारना
पाँवों का भटकाव
जिन्दगी का ठहराव
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इन सब की जलाओ होली
फिर दिल से मनाओ होली !
Wednesday, March 19, 2008
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4 comments:
वाह जैन साहेब वाह...एक एक शब्द अमूल्य है...जीवन दर्शन इतनी सुन्दरता से व्यक्त करने पर हार्दिक बधाई.
नीरज
बहुत खूब..होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ.
aaj pehli baar aapke blog par aanaa hua ... bhai vaah , dil khush ho gayaa ... jitne sunder vichaar hain utni hi sunder prastuti bhi ... badhai , aapke lekhan ke liye v badhai , holi ki bhi ...
कोई भी इन सबके साथ पैदा नहीं होता। इसी समाज में हमारे-आपके ही बीच वह इन शब्दों को पहले सुनता है, फिर गाहे-बगाहे उन्हें आजमाता है। और जो इसकी लत लग गई...फिर तो खुदा ही मालिक है।
बहरहाल, होली की ढेर सारी शुभकामनाएं। और मेरी कोशिशों को सराहने के लिए आभार।
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