मोहब्बत का नया अंदाज़ जानी साथ रख लेना
सफर में संग चलने की कहानी साथ रख लेना
बहुत आसान है लड़ना सफर की गर्दिशों से पर
जरा पक्का इरादा और जवानी साथ रख लेना
नहीं आसां पहुँचना मंजिलों पर भूल मत जाना
क़दम अपने उठाओ तो रवानी साथ रख लेना
हमेशा झूठ कहने से कभी इज्ज़त नहीं मिलती
तुम अपने साथ थोड़ी हकबयानी साथ रख लेना
मिलेंगे फूल कम काँटे ही ज्यादा साथ में होंगे
झटक कर हर मुसीबत शादमानी साथ रख लेना
Wednesday, April 2, 2008
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7 comments:
वाह साहब. बहुत उम्दा ग़ज़ल.
झटककर परेशानी शादमानी साथ रख लेना...
वाह !
नहीं आसां पहुँचना मंजिलों पर भूल मत जाना
क़दम अपने उठाओ तो रवानी साथ रख लेना
bahut khuub....
डॉ.जैन साहब आपके आखिरी शेर का मिसरे सानी वज़्न से गिर रहा है.
मिलेंगे फूल कम काँटे ही ज्यादा साथ में होंगे,
झटककर परेशानी शादमानी साथ रखलेना.
पहले मिसरे का वज़्न इस प्रकार है-
तक्तीअ-
मफाईलुन- मफाईलुन मफाईलिन- मफाईलुन
1222 -1 2 22 -1222 - 1222
मिलेंगेफू - ल कमकाँटे हिज्यादासा - थमेंहोंगे
दूसरे मिसरे में
झटकर परेशानी शादमानी का क्या करें? अगर
इस मिसरे को इस तरह करलें तो वज़्न भी दुरस्त हो जायेगा और अर्थ में भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.देखें-
झटक कर हर मुसीबत शादमानी साथ रखलेना.
आगे आपकी मर्ज़ी.
जैन साहेब
अब आपका तो कोई जवाब ही नहीं है..लाजवाब हैं आप. इतनी खूबसूरत ग़ज़ल के बहुत बहुत शुक्रिया.
नीरज
हमेशा झूठ कहने से कभी इज्ज़त नहीं मिलती
तुम अपने साथ थोड़ी हकबयानी साथ रख लेना
बहुत खुब च्न्दर जेन जी,कया बात हे,भाई आप के मरीज तो इतने सुन्दर सुन्दर शेर सुन कर ही ठीक हो जाते होगे.
शुक्रिया डा.भदौरिया जी
मैने संशोधन कर दिया है.
राज साहब ,
मैं वो डॉक्टर नहीं जो आप समझ रहे हैं .
मैने डॉक्टर ऑफ फिलॉसोफी
हासिल की है साहित्य में.
शब्द -संसार और अभिव्यक्ति -कला के
मर्ज़ और दवा से दिन-प्रतिदिन का नाता है .
आप के स्नेह का आभार.
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