Monday, June 20, 2011

मैं एक विस्फोट हूँ....!

कुचल दो मुझे
मैं उठा हुआ सिर हूँ
मैं तनी हुई भृकुटी हूँ
मैं उठा हुआ हाथ हूँ
मैं आग हूँ
बीज हूँ
आंधी हूँ
तूफान हूँ
और उन्होंने
सचमुच कुचल दिया मुझे
एक जोरदार धमाका हुआ
चिथड़े-चिथड़े हो गए वे
उन्हें नहीं मालूम था
मैं एक विस्फोट हूँ
=========================
श्री शिवराम की कविता सादर प्रस्तुत.

2 comments:

munnababu said...

wonderful poem.
===================
thanks for sharing it here.

MUNNA BABU.

रंजना said...

समसामयिक सार्थक,बहुत ही सुन्दर रचना...