ई वेस्ट की अनदेखी पड़ सकती है भारी
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डॉ. चन्द्रकुमार जैन
राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
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विकसित देशों के साथ विकासशील देशों की प्रतिस्पर्धा कोई नई बात नहीं है, किन्तु भारत को ऐसी प्रतिस्पर्धा का खामियाजा ई वेस्ट यानी इलेक्ट्रानिक कचरे की गंभीर समस्या के रूप में भुगतना पड़ेगा, इसकी शायद कल्पना भी नहीं की गयी थी. कई देशों ने अपने ई-वेस्ट के निबटारे के लिए भारत को स्थायी और सुविधाजनक अड्डा बना लिया है. दूसरी ओर भारत में इस समस्या से निदान का कोई ठोस प्रबंधन नहीं दिख रहा है.
अनियोजित और अव्यवस्थित ढंग से,सब तरफ चीजें रिसाइकिल कर, बाज़ार में बेधड़क खपाई जा रही हैं. समझा जा रहा है इस सिलसिले में क़ानून भी कुछ ख़ास नहीं कर पा रहा है. ई-वेस्ट की ग़लत रीसाइकलिंग के खतरों का विज्ञापन भी बेअसर मालूम पड़ रहा है, वरना समस्या इस कदर चिंताजनक नहीं होती.दरअसल हमारे देश में ई-वेस्ट को लेकर कभी गंभीर कदम उठाये ही नहीं गए, न ही उन्हें ठिकाने लगाने के कोई कारगर कदम उपाय किए गए. लिहाज़ा जहाँ-तहाँ ई-वेस्ट का ऐसा मंज़र देखा जा सकता है कि जैसे ये कोई मुद्दा ही नहीं है.
चोर दरवाजों से आता है ?
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आंकड़े कहते हैं कि हर साल भारत में 3,50,000 टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट जमा हो जाता है और 50,000 टन गैर कानूनी ढंग से आयात होता है. उन्हें यहाँ तक लाने के चोर दरवाजे बड़ी कुशलता से खोज लिए गए हैं. मसलन उन्हें स्क्रैप, बिजली के दोयम दर्जे के सामान एवं अन्य चीजों के रूप में भारत पहुँचाया जाता है . इस ई-वेस्ट का 90 प्रतिशत हिस्सा रिसाइकिल कर दिया जाता है, लेकिन यह सब अनियोजित तरीक़े से करना भारी पड़ता है.भारत में हर साल लाखों टन ई वेस्ट एकत्र होता है जिनमें से कोई पंद्रह प्रतिशत भाग ही सही तरह से रिसाइकिल हो पाता है. कहने की आवश्कता नहीं है की शेष ई वेस्ट खतरनाक ढंग से हमारी ज़िन्दगी में पहुँचता है जिसे ढोकर जीना हमारी नियति बन चुका है.
आखिर क्या है ये ई वेस्ट ?
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सही रिसाइक्लिंग जरूरी
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ई-वेस्ट को सही तरीक़े से रिसाइकिल करना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन ई-वेस्ट से निपटाने का काम कबाड़ वालों के हाथ में है. इसके पीछे कारण भी स्पष्ट है. ई वेस्ट के सही रिसाइकिलिंग के लिए बड़ी पूंजी चाहिए और यह अनियोजित क्षेत्र के सीमित आर्थिक संसाधन वाले निर्माताओं और उत्पादकों के बस की बहार की बात है. यदि देश में लोगों को ई-वेस्ट के संग्रह और उसे निबटान के काम में लगाया जाए और बाद की प्रक्रिया औद्योगिक स्तर पर की जाये तो समस्या एक हद तक सुलझ सकती है.
ई वेस्ट का बढ़ता ग्राफ, लोगों के जीवन से खेलने का चिंताजनक उदाहरण है. अगर नई तकनीक अपनाकर छोटी लेकिन नियोजित ढंग से रीसाइकलिंग की जा सके तो भी बात बन सकती है. वातावरण को अशुद्द करके, लोगों को घुट-घुट कर जीने के लिए विवश करके इसी तरह
ई वेस्ट की गिरफ्त में समाज पिसता रहा तो आने वाला समय बड़ा विध्वंसक बन सकता है. निर्माता कंपनियों को भी चाहिए कि भी वे अपने प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग का दायित्व स्वयं वहन करें. भारत में ई-वेस्ट रिसाइकिलिंग के सबसे बड़े अड्डे पीतमपुर, दिल्ली और मुरादाबाद हैं. इस सन्दर्भ में यह विचार भी मूर्त रूप होना चाहिए कि ई वेस्ट की वापसी के लिए निर्माता कम्पनियाँ तैयार रहें. नोएडा की तरह देश के अन्य शहरों में भी ई वेस्ट के रि प्रोसेसिंग के लिए अधिकारिक कम्पनियाँ खोली की जानी चाहिए, क्योंकि ई वेस्ट की मात्रा इतनी अधिक है कि उसे अधिक समय तक नज़रंदाज़ करना अपने हाथों अपनी कब्र खोदने के सामान है.
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1 comment:
जैन जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग डॉ.चंद्रकुमार जैन' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 8 अगस्त को 'सुलगता सवाल' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
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