निर्णायक लड़ाई का वह यादगार दिन
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
राजनांदगाँव. मो. 9301054300
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लूटा न कभी देश के हित खुद को लुटाया
औरों के लिए अपना लहू खूब बहाया
बलिदान हो गए अमर शहीद वतन के
उनको जो मिली मौत अमन हमने है पाया
द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बावजूद जब अंग्रेज भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आजादी की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया जिससे ब्रिटिश हुकूमत में दहशत फैल गई । भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ९ अगस्त सन १९४२ को गांधी जी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था। क्रिप्स मिशन की विफ़लता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला किया । अगस्त 1942 में शुरू हुए इस आंदोलन को 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। यद्यपि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधी गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।
भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जनांदोलन था . इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया। जिस दौरान कांग्रेस के नेता कारागार में थे उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फ़ैलाने में लगे थे। इन्हीं सालों में लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौका मिला जहाँ अभी तक उसका कोई खास वजूद नहीं था।
जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधी जी को रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार बात की। 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी। यह सरकार भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।
भारत छोडो आन्दोलन की शुरुआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी इसीलिए इतिहास में नौ अगस्त के दिन को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। मुम्बई के जिस पार्क से यह आंदोलन शुरू हुआ उसकी उसकी प्रसिद्धि अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से है। अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए चार जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक स्तर पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाने की रूपरेखा बनाई थी.
इस प्रस्ताव को लेकर हालाँकि पार्टी के भीतर मतभेद पैदा हो गए, फिर भी इससे भारत आज़ादी के अंडों की गति अवरुद्ध न हो सकी. अंग्रेजी हुकूमत इस बारे में पहले से ही सतर्क थी इसलिए अगले ही दिन गाँधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर दिया गया। कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में बंद कर दिया गया। लगभग सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन युवा नेत्री अरुणा आसफ अली हाथ नहीं आईं और उन्होंने नौ अगस्त 1942 को मुम्बई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर गाँधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद कर दिया।गाँधीजी ने हालाँकि अहिंसक रूप से आंदोलन चलाने का आह्वान किया था लेकिन देशवासियों में अंग्रेजों को भगाने का ऐसा जुनून पैदा हो गया कि कई स्थानों पर बम विस्फोट हुए, सरकारी इमारतों को जला दिया गया, बिजली काट दी गई तथा परिवहन और संचार सेवाओं को भी ध्वस्त कर दिया गया। जगह जगह हड़ताल की गई।
कई जगह पर लोगों ने अंग्रेजी प्रशासन की चूलें हिला कर रख दी. गिरफ्तार किए गए नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को जेल तोड़कर मुक्त करा लिया तथा वहाँ स्वतंत्र शासन स्थापित कर दिया। एक तो अंग्रेजों की शिकस्त द्वितीय विश्व युद्ध में पहले ही तय हो चुकी थी दूसरी ओर भारत छोड़ो आंदोलन उनके तमाम गलत मंसूबों पर पानी फेरने पर आमादा था. इतिहास गवाह है इस आंदोलन से अंग्रेज बुरी तरह बौखला गए। उन्होंने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों और निर्दोष लोगों को गोली से उड़ा दिया तथा देशभर में एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद आंदोलन पूरे जोश के साथ चलता रहा लेकिन गिरफ्तारियों की वजह से कांग्रेस का समूचा नेतृत्व शेष दुनिया से लगभग तीन साल तक कटा रहा।
गाँधीजी ने स्वास्थ्य की बिगड़ी दशा को दरकिनार कर अपना आंदोलन जारी रखने के लिए 21 दिन की भूख हड़ताल की। 1944 में गाँधीजी का तबीयत बेहद बिगड़ जाने पर अंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया। बहरहाल अंग्रेजों ने हालात पर काबू पा लिया जिससे बहुत से राष्ट्रवादी अत्यंत निराश हुए। गाँधीजी और कांग्रेस को मोहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम लीग, वामपंथियों और अन्य विरोधियों की आलोचना का सामना करना पड़ा। फिर भी दो मत नहीं कि अगस्त क्रांति ने भारत की आजादी के स्वप्न को साकार करने में निर्णायक भूमिका अदा की.
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1 comment:
जैन जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग चंद्रकुमार जैन से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 13 अगस्त को मौत पर अमन हमने पाया शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए भास्करभूमि.काम में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
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