डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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दुनिया में तकनीकी क्रांति के सूत्रधार स्टीव जॉब्स
अब संसार में नहीं रहे. सिलिकॉन वैली के आइकन
स्टीव भले ही पूरी शिक्षा नहीं ले पाए हों लेकिन
जिंदगी के हर इम्तिहान में उन्होंने कामयाबी हासिल की।
स्टीव आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमारे देश में भी
कई ऎसी कामयाब हस्तियां हैं, जो किसी कारणवश
भले ही पूरी पढ़ाई नहीं कर पाए हों लेकिन जिंदगी
की रेस में वो बहुत आगे हैं।
30 हजार से ज्यादा गाने गाने वाली
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को दुनिया के
छह विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की डिग्री दी है।
लेकिन सच्चाई ये है कि लता मंगेशकर ने सिर्फ
कुछ महीने ही स्कूल में बिताए हैं।
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एक और नाम है मिकी मुकेश जगतियानी। दुबई में रहते हैं और उनकी रिटेल कंपनी लैंडमार्क ने दुनियाभर में कामयाबी के झंडे गाड़ रखे हैं। भारत, पाकिस्तान, खाड़ी देशों के अलावा स्पेन और चाइना समेत 15 देशों में उनके 900 से ज्यादा रिटेल स्टोर हैं। उन्हें लोग "रिटेल किंग" के नाम से भी जानते हैं। पिछले दिनों खाड़ी सहयोग परिषद ने गल्फ देशों में सबसे अमीर भारतीयों की एक लिस्ट जारी की, जिसमें सबसे ऊपर मिकी जगतियानी का ही नाम है। 3.2 अरब डॉलर के साम्राज्य के मालिक मिकी जगतियानी ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी और कारोबार में लग गए।
उनकी स्कूली शिक्षा मुंबई से शुरू हुई। इसके बाद लंदन अकाउंटिंग स्कूल में उनका एडमिशन हुआ, लेकिन जगतियानी का मन पढ़ाई लिखाई में लगा नहीं और उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। 1973 में उन्होंने लैंडमार्क कंपनी बनाई और बहरीन में अपना पहला स्टोर खोला और आज जगतियानी कामयाबी की बुलंदी पर हैं। 31 हजार लोग उनकी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। यही नहीं जगतियानी समाजसेवा में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
लाइफ यानी लैंडमार्क इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर एम्पावरमेंट नाम से उनका एक ट्रस्ट भी है जो हिंदुस्तान में एक लाख से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई लिखाई, वोकेशनल ट्रेनिंग और मेडिकल सुविधाओं का जिम्मा उठा रहा है। मिकी भले ही पढ़ाई के मामले में ड्रॉपआउट हों, लेकिन जिंदगी के इम्तिहान में हमेशा अव्वल रहे हैं। जो कुछ बने अपने दम पर बने, जो कुछ बनाया, अपने दम पर बनाया।
सॉफ्टवेयर निर्माण से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी का नाम दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार है। फ़ोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक वे दुनिया के 26वें नंबर के अमीर इंसान हैं। मैग्जीन ने उन्हें भारत का बिल गेट्स का खिताब दिया है। 64 वर्षीय अजीम प्रेमजी भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा के द्वार खोलने में लगे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने 450 करोड़ रूपए का दान भी दिया है। यही नहीं पिछले साल गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च के लिए अजीम प्रेमजी ने 9000 करोड़ रूपए का दान दिया था।
ये शायद इस वजह से भी हो कि खुद अजीम प्रेमजी ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाए। 1966 में अजीम प्रेमजी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अमरीका के स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी गए थे। लेकिन इसी साल उनके पिता का देहांत हो गया, लिहाजा फैमिली बिजनेस संभानले के लिए उन्हें घर लौटना पड़ा। उस वक्त अजीम प्रेमजी की उम्र सिर्फ 21 साल थी। पढ़ाई छूट गई और बिजनेस में रम गए अजीम प्रेमजी। अपनी मेहनत और लगन से साबुन और तेल बेचने वाली कंपनी विप्रो को अजीम प्रेमजी ने दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में शामिल कर दिया। आज दौलत उनके कदम चूमती है। एक बात उन्हें हमेशा कचोटती है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। शायद इसीलिए बात शिक्षा की हो तो इसके लिए अजीम प्रेमजी दिल खोलकर दान देते हैं।
भारत के मीडिया मुगल कहे जाने वाले सुभाष चंद्रा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी जिंदगी की कहानी जर्रे से आफताब बनने की कहानी जैसी है। एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा देश में सेटेलाइट टेलीविजन क्रांति के जनक माने जाते हैं। उनके जी नेटवर्क के दो दर्जन से ज्यादा चैनल चल रहे हैं। 60 साल के सुभाष चंद्रा बड़े-बड़े जोखिम लेना जानते हैं। कुछ सालों पहले तो उन्होंने बीसीसीआई को चुनौती देते हुए इंडियन क्रिकेट लीग तक बना ली थी। सुभाष चंद्रा ने तालीम रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट की भी स्थापना की, वे एकल विद्यालय फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं, लेकिन खुद सुभाष चंद्रा को कभी पढ़ाई से ज्यादा प्यार नहीं रहा। कॉपी किताबों से दूर भागते थे। हरियाणा के हिसार में जन्मे सुभाष चंद्रा ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।19 साल की उम्र में उन्होंने वेजिटेबल ऑयल की यूनिट लगाई और कारोबार शुरू किया। फिर चावल का व्यापार करने लगे। इसके बाद सुभाष चंद्रा अनाज एक्सपोर्ट के व्यवसाय में लग गए।
1981 में सुभाष चंद्रा एक पैकेजिंग एक्जिबिशन में गए तो वहीं उन्हें एस्सेल पैकेजिंग कंपनी बनाने का ख्याल आया और उन्होंने कंपनी बनाई भी। धीरे धीरे सुभाष चंद्रा का कारोबार बढ़ता गया। बाद में वे ब्रॉडकास्टिंग के बिजनेस में उतर गए। 2 अक्टूबर 1992 में उन्होंने जी टीवी के नाम से देश का पहला प्राइवेट सेटेलाइट चैनल शुरू किया। इसके बाद तो चैनल पर चैनल आते गए। सुभाष चंद्रा आज अरबों रूपए की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन आज भी उनका जमीन से रिश्ता टूटा नहीं है।
बाबा रामदेव जब वेद, वेदांत और दर्शन पर बोलते हैं तो ऎसा लगता है कि जैसे धर्म, अध्यात्म और दर्शन में उन्होंने पीएचडी कर रखी है, लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि योग गुरू बाबा रामदेव भी स्कूल ड्रॉपआउट हैं। बाबा रामदेव का जन्म 1965 में हरियाणा के मेहरानगढ़ जिले के अली सैयदपुर गांव में हुआ था। उनका नाम रखा गया था रामकृष्ण यादव। सिर्फ 9 साल की उम्र में बाबा ने घर छोड़ दिया था। उन्होंने खानपुर में आदर्श गुरूकुल ज्वाइन किया जहां उन्होंने संस्कृत और योग की शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई आगे नहीं बढ़ाई। बाबा ने योग और आयुर्वेद को एक नई जिंदगी दी। अपने दम पर उन्होंने पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
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दुनिया में तकनीकी क्रांति के सूत्रधार स्टीव जॉब्स
अब संसार में नहीं रहे. सिलिकॉन वैली के आइकन
स्टीव भले ही पूरी शिक्षा नहीं ले पाए हों लेकिन
जिंदगी के हर इम्तिहान में उन्होंने कामयाबी हासिल की।
स्टीव आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमारे देश में भी
कई ऎसी कामयाब हस्तियां हैं, जो किसी कारणवश
भले ही पूरी पढ़ाई नहीं कर पाए हों लेकिन जिंदगी
की रेस में वो बहुत आगे हैं।
30 हजार से ज्यादा गाने गाने वाली
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को दुनिया के
छह विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की डिग्री दी है।
लेकिन सच्चाई ये है कि लता मंगेशकर ने सिर्फ
कुछ महीने ही स्कूल में बिताए हैं।
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एक और नाम है मिकी मुकेश जगतियानी। दुबई में रहते हैं और उनकी रिटेल कंपनी लैंडमार्क ने दुनियाभर में कामयाबी के झंडे गाड़ रखे हैं। भारत, पाकिस्तान, खाड़ी देशों के अलावा स्पेन और चाइना समेत 15 देशों में उनके 900 से ज्यादा रिटेल स्टोर हैं। उन्हें लोग "रिटेल किंग" के नाम से भी जानते हैं। पिछले दिनों खाड़ी सहयोग परिषद ने गल्फ देशों में सबसे अमीर भारतीयों की एक लिस्ट जारी की, जिसमें सबसे ऊपर मिकी जगतियानी का ही नाम है। 3.2 अरब डॉलर के साम्राज्य के मालिक मिकी जगतियानी ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी और कारोबार में लग गए।
उनकी स्कूली शिक्षा मुंबई से शुरू हुई। इसके बाद लंदन अकाउंटिंग स्कूल में उनका एडमिशन हुआ, लेकिन जगतियानी का मन पढ़ाई लिखाई में लगा नहीं और उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। 1973 में उन्होंने लैंडमार्क कंपनी बनाई और बहरीन में अपना पहला स्टोर खोला और आज जगतियानी कामयाबी की बुलंदी पर हैं। 31 हजार लोग उनकी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। यही नहीं जगतियानी समाजसेवा में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
लाइफ यानी लैंडमार्क इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर एम्पावरमेंट नाम से उनका एक ट्रस्ट भी है जो हिंदुस्तान में एक लाख से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई लिखाई, वोकेशनल ट्रेनिंग और मेडिकल सुविधाओं का जिम्मा उठा रहा है। मिकी भले ही पढ़ाई के मामले में ड्रॉपआउट हों, लेकिन जिंदगी के इम्तिहान में हमेशा अव्वल रहे हैं। जो कुछ बने अपने दम पर बने, जो कुछ बनाया, अपने दम पर बनाया।
सॉफ्टवेयर निर्माण से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी का नाम दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार है। फ़ोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक वे दुनिया के 26वें नंबर के अमीर इंसान हैं। मैग्जीन ने उन्हें भारत का बिल गेट्स का खिताब दिया है। 64 वर्षीय अजीम प्रेमजी भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा के द्वार खोलने में लगे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने 450 करोड़ रूपए का दान भी दिया है। यही नहीं पिछले साल गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च के लिए अजीम प्रेमजी ने 9000 करोड़ रूपए का दान दिया था।
ये शायद इस वजह से भी हो कि खुद अजीम प्रेमजी ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाए। 1966 में अजीम प्रेमजी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अमरीका के स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी गए थे। लेकिन इसी साल उनके पिता का देहांत हो गया, लिहाजा फैमिली बिजनेस संभानले के लिए उन्हें घर लौटना पड़ा। उस वक्त अजीम प्रेमजी की उम्र सिर्फ 21 साल थी। पढ़ाई छूट गई और बिजनेस में रम गए अजीम प्रेमजी। अपनी मेहनत और लगन से साबुन और तेल बेचने वाली कंपनी विप्रो को अजीम प्रेमजी ने दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में शामिल कर दिया। आज दौलत उनके कदम चूमती है। एक बात उन्हें हमेशा कचोटती है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। शायद इसीलिए बात शिक्षा की हो तो इसके लिए अजीम प्रेमजी दिल खोलकर दान देते हैं।
भारत के मीडिया मुगल कहे जाने वाले सुभाष चंद्रा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी जिंदगी की कहानी जर्रे से आफताब बनने की कहानी जैसी है। एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा देश में सेटेलाइट टेलीविजन क्रांति के जनक माने जाते हैं। उनके जी नेटवर्क के दो दर्जन से ज्यादा चैनल चल रहे हैं। 60 साल के सुभाष चंद्रा बड़े-बड़े जोखिम लेना जानते हैं। कुछ सालों पहले तो उन्होंने बीसीसीआई को चुनौती देते हुए इंडियन क्रिकेट लीग तक बना ली थी। सुभाष चंद्रा ने तालीम रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट की भी स्थापना की, वे एकल विद्यालय फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं, लेकिन खुद सुभाष चंद्रा को कभी पढ़ाई से ज्यादा प्यार नहीं रहा। कॉपी किताबों से दूर भागते थे। हरियाणा के हिसार में जन्मे सुभाष चंद्रा ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।19 साल की उम्र में उन्होंने वेजिटेबल ऑयल की यूनिट लगाई और कारोबार शुरू किया। फिर चावल का व्यापार करने लगे। इसके बाद सुभाष चंद्रा अनाज एक्सपोर्ट के व्यवसाय में लग गए।
1981 में सुभाष चंद्रा एक पैकेजिंग एक्जिबिशन में गए तो वहीं उन्हें एस्सेल पैकेजिंग कंपनी बनाने का ख्याल आया और उन्होंने कंपनी बनाई भी। धीरे धीरे सुभाष चंद्रा का कारोबार बढ़ता गया। बाद में वे ब्रॉडकास्टिंग के बिजनेस में उतर गए। 2 अक्टूबर 1992 में उन्होंने जी टीवी के नाम से देश का पहला प्राइवेट सेटेलाइट चैनल शुरू किया। इसके बाद तो चैनल पर चैनल आते गए। सुभाष चंद्रा आज अरबों रूपए की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन आज भी उनका जमीन से रिश्ता टूटा नहीं है।
बाबा रामदेव जब वेद, वेदांत और दर्शन पर बोलते हैं तो ऎसा लगता है कि जैसे धर्म, अध्यात्म और दर्शन में उन्होंने पीएचडी कर रखी है, लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि योग गुरू बाबा रामदेव भी स्कूल ड्रॉपआउट हैं। बाबा रामदेव का जन्म 1965 में हरियाणा के मेहरानगढ़ जिले के अली सैयदपुर गांव में हुआ था। उनका नाम रखा गया था रामकृष्ण यादव। सिर्फ 9 साल की उम्र में बाबा ने घर छोड़ दिया था। उन्होंने खानपुर में आदर्श गुरूकुल ज्वाइन किया जहां उन्होंने संस्कृत और योग की शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई आगे नहीं बढ़ाई। बाबा ने योग और आयुर्वेद को एक नई जिंदगी दी। अपने दम पर उन्होंने पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
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