क्या कहा ?
अँधेरा हो गया है !
भ्रमान्ध हो तुम
दरअसल सबेरा हो गया है
जब रोशनी
विश्राम करने
कहीं दूर चली जाती है
तब अंधकार को कुछ जगह मिल जाती है
मतलब ये तो नहीं कि रोशनी की बुनियाद हिल जाती है !
अँधेरा हो गया है !
भ्रमान्ध हो तुम
दरअसल सबेरा हो गया है
जब रोशनी
विश्राम करने
कहीं दूर चली जाती है
तब अंधकार को कुछ जगह मिल जाती है
मतलब ये तो नहीं कि रोशनी की बुनियाद हिल जाती है !
वास्तव में अंधकार की कोई अलग सत्ता नहीं है
लगता है वहाँ चिराग़ अलबत्ता नहीं है
सुनो ! मत पूछो अँधेरा क्यों है ?
बल्कि सोचो कि उजाला क्यों नहीं है ?
अंधेरे पर सवाल छोड़ो उजाले से नाता जोड़ो.
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लगता है वहाँ चिराग़ अलबत्ता नहीं है
सुनो ! मत पूछो अँधेरा क्यों है ?
बल्कि सोचो कि उजाला क्यों नहीं है ?
अंधेरे पर सवाल छोड़ो उजाले से नाता जोड़ो.
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4 comments:
वाह नई उमगं से भरो अपने आप को, निराशा से नही आशा तीत हो कर जियो.
बहुत धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिये
kya baat hai jab sab log ye soch pareshan ho ki adhera hai aur dukhi ho ki adhera hai waha ye koi soche ki ujala kyu nahi karan kya hai aur use laya kaise jaaye zaruri hai
achha laga aapke vicharon se milna
आपकी अभिव्यक्ति में इतना खो गया, कि परत दर परत खुलने लगे मेरी अभिव्यक्तियों के द्वार , कुछ पंक्तियाँ देखिये -
" जिंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये , आस्तीनों में संभाल कर सौंप पाला कीजिये !
रोशनी परछाईयों में कैद हो जाए अगर, आत्मा के द्वार से कुछ तो उजाला कीजिये !" बधाई स्वीकारें....!
अंधेरे पर सवाल छोड़ो
उजाले से नाता जोड़ो.
बहुत बढ़िया डाक्टर साहेब।
सार्थक , प्रेरक कविता के लिए आभार ...
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