
ये जो मेरे चेहरे पर खुशियों का साया लगता है
अपनों से ही मैंने अपना दर्द छुपाया लगता है
सच है दुनिया वाले उसको मेरा अपना कहते हैं
मेरा हमदम है लेकिन क्यों मुझे पराया लगता है
उम्मीदों के दीप यहाँ जलते आए हैं बरसों से
फिर दहशत, अवसाद का बस्ती में क्यों साया लगता है
जैसे शीशे टूट रहे हों, टूट रहे हैं रिश्ते भी
शायद संबंधों पर एक भूचाल-सा आया लगता
बातें गैरों से अपनेपन की क्यों करता दीवाना
शायद उसको भी अपनों ने बहुत सताया लगता है
इस दुनिया में सोचो हसरत किसकी पूरी होती है
जिसको देखो वही अधूरा,कुछ न पाया लगता है
अपनों से ही मैंने अपना दर्द छुपाया लगता है
सच है दुनिया वाले उसको मेरा अपना कहते हैं
मेरा हमदम है लेकिन क्यों मुझे पराया लगता है
उम्मीदों के दीप यहाँ जलते आए हैं बरसों से
फिर दहशत, अवसाद का बस्ती में क्यों साया लगता है
जैसे शीशे टूट रहे हों, टूट रहे हैं रिश्ते भी
शायद संबंधों पर एक भूचाल-सा आया लगता
बातें गैरों से अपनेपन की क्यों करता दीवाना
शायद उसको भी अपनों ने बहुत सताया लगता है
इस दुनिया में सोचो हसरत किसकी पूरी होती है
जिसको देखो वही अधूरा,कुछ न पाया लगता है