ख़ुद मेहनत और पसीने से
जो मिल जाए वह खाते हैं
संसार सुखी जो बना रहे
पर सब दुःख ख़ुद पी जाते है
जिन श्रमवीरों के हाथों की
मिट गईं लकीरें उन्हें नमन
जिनकी फौलादी हिम्मत से
टूटीं जंजीरें उन्हें नमन ....!
जो मिल जाए वह खाते हैं
संसार सुखी जो बना रहे
पर सब दुःख ख़ुद पी जाते है
जिन श्रमवीरों के हाथों की
मिट गईं लकीरें उन्हें नमन
जिनकी फौलादी हिम्मत से
टूटीं जंजीरें उन्हें नमन ....!
5 comments:
sachmuch naman unhe.....
उन्हें नमन, नमन उन्हें भी, जो तोड़ेंगे इन्साँ की बेड़याँ।
डाक्टर साहब। कमाल की रचना। सामयिक और यथार्थ।
हमारा भी नमन
hamara bhi naman unhe,bahut sundar
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