रहो ज़मीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपने सोच को हर वक़्त लाज़वाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उभर रहा है जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजाले में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिलो तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वफ़ा की रखो और बेहिसाब रखो
लिबास कोई भी पहनो मगर ये याद रहे
तुम अपने क़द को मगर यूँ न बेहिज़ाब रखो
तुम अपने सोच को हर वक़्त लाज़वाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उभर रहा है जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजाले में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिलो तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वफ़ा की रखो और बेहिसाब रखो
लिबास कोई भी पहनो मगर ये याद रहे
तुम अपने क़द को मगर यूँ न बेहिज़ाब रखो
11 comments:
Dr. Sahab,
Bahut Khubsurat Nazma...
लिबास कोई भी पहनो मगर ये याद रहे
तुम अपने क़द को मगर यूँ न बेहिज़ाब रखो
atti sunder
bahut khoob....तुम अपने सोच को हर वक़्त लाज़वाब रखो....
aaj ke yug ki maang bhi yahi hai...
behad khubsurat
किरदार की किताब....वाह।
बेहतरीन!!
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
लिबास कोई भी पहनो मगर ये याद रहे
तुम अपने क़द को मगर यूँ न बेहिज़ाब रखो
हर शेर बेहतरीन है।
***राजीव रंजन प्रसाद
क्या कहूँ?
क्या लिखूं?
शब्द नही मिल रहे.
बेहतरीन!
उम्दा!
लाजवाब!
आप सब का अंतस्तल से आभार.
स्नेह बनाए रखिये.
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चंद्रकुमार
हर शेर बेहतरीन है.
धन्यवाद महेंद्र जी.
चंद्रकुमार
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