Friday, June 27, 2008

क़द...!


अपने क़द को

ध्यान में रखकर

उसने खड़ी कीं

ऊँची दीवारें

और बनाया

एक आलीशान महल

अब देखिए

महल ऊँचा हो गया

और उसका क़द....!

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16 comments:

Rafaela said...

Todo mundo remando na piroca havaiana!

Luna said...

Olha o quibe!!!

रंजू भाटिया said...

सुंदर .

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया.

Advocate Rashmi saurana said...

bhut khub.sundar rachana ke liye badhai.

mehek said...

bahut khub

डॉ .अनुराग said...

kya bat kahi....

Shiv said...

बहुत बढ़िया...

Ashok Pandey said...

छोटी लेकिन बेधक कविता।
लोग दीवारों को उंचा करते वक्‍त यह ध्‍यान नहीं रखते कि ईश्‍वर ने उनके कद की उंचाई कितनी तय कर रखी है।

महेन said...

काफ़ी कुछ कहने का मन कर रहा है थोड़ी सी पंक्तियां पढ़कर। आपने खूब शब्दों की कंजूसी करके भी सबकुछ कह दिया।
शुभम।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बडी बात कह दी आपने ..

डा. अमर कुमार said...

मनन करने को बाध्य करती रचना

Udan Tashtari said...

बहुत गहरी रचना!! साधुवाद.

Rajesh Roshan said...

गहरी रचना....

seema gupta said...

kmal ka likha hai

Regards

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया....शुक्रिया.....शुक्रिया
आप सब का बहुत...बहुत...शुक्रिया.
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डा.चन्द्रकुमार जैन