Saturday, August 2, 2008

ज़िंदगी कितनी हंसीं है...!

सोचता हूँ मैं कि
मेरी ज़िंदगी कितनी हंसीं है
आसमां अपना-सा है
अपनी ही सारी ये ज़मीं है
क्यूँ शिकायत हो किसी से
फ़ासले क्यूँ-कर रखूँ मैं
दर्द अपना पर ज़हां की
आँखों में देखी नमी है
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9 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

bhut gahari rachana kar di hai aapne. ati uttam.

Vivekk singh Chauhan said...

bhut sundar rachana badhai ho.

परमजीत सिहँ बाली said...

मनोभावों को बखूबी प्रस्तुत किया है।सुन्दर।

vipinkizindagi said...

happy friendship day...

चाहे हो हममे गहरी दोस्ती,
इसमे भरोसा ज़रूरी तो है,
हम तो समझते है मगर,
रिश्ते का नाम ज़रूरी तो है,
वो अक्सर आती है यादो में,
यादो में उसकी खुश्बू ज़रूरी तो है

राजीव रंजन प्रसाद said...

दर्द अपना पर ज़हां की
आँखों में देखी नमी है

वाह!!


***राजीव रंजन प्रसाद

www.rajeevnhpc.blogspot.com

समयचक्र said...

bahut sundar khyaal. mitr diwas ki hardik shubhakamana ke sath.

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जैन साहब बहुत ही सुंदर रचना बधाई हो साथ ही मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया मित्रों...शुक्रिया
आप सब का.
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मेरी शुभकामनायें भी स्वीकार करें
दा.चन्द्रकुमार

नीरज गोस्वामी said...

दर्द अपना पर ज़हां की
आँखों में देखी नमी है
वाह...वा...जैन साहेब...बहुत किस्मत वाले हैं आप वरना ज़माने को दूसरों के गम में हँसते हुए ही देखा है...
नीरज