Tuesday, August 5, 2008

हँसी न हो पराई....!

मिलन के पूर्व ही
देखी विदाई ज़िंदगी में
अगर पर्वत है तो
बेशक है खाई ज़िंदगी में
मगर इंसान का हक
तब अदा होता है मित्रों
रुदन में भी हँसी
न हो पराई ज़िंदगी में
=================

9 comments:

रंजू भाटिया said...

सही कहा आपने
मगर इंसान का हक
तब अदा होता है मित्रों
रुदन में भी हँसी
न हो पराई ज़िंदगी में

बहुत सुंदर

डॉ .अनुराग said...

मगर इंसान का हक
तब अदा होता है मित्रों
रुदन में भी हँसी
न हो पराई ज़िंदगी में
bahut khoob.....

नीरज गोस्वामी said...

क्या बात है जैन साहेब....आप की रचनाएँ पढ़ली जिसने उसे और कोई ग्रन्थ आदि पढने की जरूरत नहीं है...पूरे जीवन जीने के गुर सिखाती हैं ये.
नीरज

Unknown said...

सच कहा
रूदन में भी हँसी
न हो पराई जिंदगी मे
बहुत खूब

Shiv said...

बहुत खूब...आपकी रचनायें जीवन जीने का तरीका बताती हैं.

Udan Tashtari said...

बहुत सुंदर!

Manish Kumar said...

is blog par aaj aapki kayi kavitayein padhin. achcha likhte hain aap.

अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब. न जाने क्यों ये याद आ गया :

स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी
बंद लगी होने खुलते ही ..... मेरी मधुमय मधुशाला ...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आभार आप सब का.
=================
डा. चन्द्रकुमार जैन