Wednesday, August 6, 2008

जीवन सहज-सरल है...!

जीवन सहज-सरल है इसको
खेल-खेल में जी लेता हूँ
रीत न जाए व्यर्थ छलक कर
अमृत है यह, पी लेता हूँ
कैसा बोझ,विवशता कैसी
सब अपना है ताना-बाना
अपनी बुनी चदरिया है यह
बिखर गई तो सी लेता हूँ
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8 comments:

बालकिशन said...

"अपनी बुनी चदरिया है यह
बिखर गई तो सी लेता हूँ "
गागर में सागर.
बहुत उम्दा...वाह
बेहतरीन.

vipinkizindagi said...

bahut achchi....
bahut sundar....
behatarin

अमिताभ मीत said...

Waah Saahab. Kyaa baat hai. bahut hi badhiyaa.

शोभा said...

अमृत है यह, पी लेता हूँ
कैसा बोझ,विवशता कैसी
सब अपना है ताना-बाना
अपनी बुनी चदरिया है यह
बिखर गई तो सी लेता हूँ
बहुत सुन्दर भावों से लबालब कविता।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा...बहुत सुन्दर.

Shiv Kumar Mishra said...

वाह वाह
बहुत सुंदर.

रंजू भाटिया said...

अपनी बुनी चदरिया है यह
बिखर गई तो सी लेता हूँ

इस बिखरे तो समेटना .सब नही कर पाते ...अच्छा लिखा आपने

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ह्रदय के अतल से आभार
आप सब के स्नेह का.
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डा.चन्द्रकुमार जैन