Friday, August 8, 2008

हो उसको प्राण समर्पित...!

हर फूल नहीं मुस्काता

हर कली नहीं खिलती है

माना जीना है बरसों

फिर भी तो चला-चली है

हो उसको प्राण समर्पित

जो सुख-दुःख में सम रहता

जिसकी पदचाप निराली

इस दिल ने सदा सुनी है

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7 comments:

pallavi trivedi said...

हो उसको प्राण समर्पित
जो सुख-दुःख में सम रहता
bahut khoob kaha....

Udan Tashtari said...

हो उसको प्राण समर्पित
जो सुख-दुःख में सम रहता

-बहुत उम्दा,बधाई.

सचिन मिश्रा said...

bahut accha likha hai

अजित वडनेरकर said...

....जिसकी पदचाप निराली
इस दिल ने सदा सुनी है

सूफियाना बातें हैं ...
बहुत अच्छी लगी पंक्तियां

बालकिशन said...

बेहतरीन..... बहुत खूब.
उम्दा प्रस्तुति.

नीरज गोस्वामी said...

माना जीना है बरसों
फिर भी तो चला-चली है
सत्य वचन जैन साहेब....सीधे सादे शब्दों में गहरी बात...
नीरज

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आभार अंतर्मन से
आप सब का.
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चन्द्रकुमार