Saturday, August 9, 2008

ज़मीं बच गई...!

जिनके पाँवों के नीचे
ज़मीं बच गई
ज़िंदगी,ज़िंदगी में
उन्हें रच गई
गगन के ख़यालों में
क्यों कर रहें
जब धरा की महक
रूह में बस गई
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5 comments:

अमिताभ मीत said...

जिनके पाँवों के नीचे
ज़मीं बच गई
ज़िंदगी,ज़िंदगी में
उन्हें रच गई

बहुत सही है जैन साहब. ये ज़मीन ही तो वुजूद है. क्या बात है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

पावों तले
जिन के
न रही जमीं
सब के सब
हवा हो गए।

बालकिशन said...

चमत्कृत!
आप गागर में सागर ले आते है.
आभार.

Udan Tashtari said...

वाह!! अति सुन्दर.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मीत
द्विवेदी जी
बालकिशन जी
और
समीर साहब.
आपका आभार
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चन्द्रकुमार