अपना यह ग्लोबल विलेज
ग्लोबली वार्म हो रहा है
यानी आदमी
आग के बिस्तर पर सो रहा है !
तकनीक का ज़माना है
माहौल है प्रदूषक
तरक्की के रंग मंच पर
हर आदमी है विदूषक
सिमट रही है वायुमंडल की ओजोन
लेकिन धरती वालों को
लेकिन धरती वालों को
समझाए कौन ?
कि ओजोन न रहेगी
तो नहीं रहेगी जिंदगी
फ़िर गुमां होगा किस पर
किस पर होगी शर्मिंदगी ?
इसलिए ओं...नोज वालों !
ओजोन को बचाओ
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाओ
ओजोन कवच होगा
हर वार हम सहेंगे
हम विश्व के हैं प्रहरी
हर बार हम कहेंगे.
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ओजोन संरक्षण दिवस, १६ सितम्बर पर प्रस्तुत.
कि ओजोन न रहेगी
तो नहीं रहेगी जिंदगी
फ़िर गुमां होगा किस पर
किस पर होगी शर्मिंदगी ?
इसलिए ओं...नोज वालों !
ओजोन को बचाओ
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाओ
ओजोन कवच होगा
हर वार हम सहेंगे
हम विश्व के हैं प्रहरी
हर बार हम कहेंगे.
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ओजोन संरक्षण दिवस, १६ सितम्बर पर प्रस्तुत.
7 comments:
बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक विषय उठाया है आपने। विडँबना यह है कि पढ़े-लिखे और खाते-पीते वर्ग की जीवन शैली ही ओज़ोन की सबसे बड़ी शत्रु है।
ओजोन को बचाओ
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाओ
ओजोन कवच होगा
हर वार हम सहेंगे
हम विश्व के हैं प्रहरी
हर बार हम कहेंगे.
सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.
पर्यावरण के प्रति आपकी चिंताओं को नमन। ऐसी तरक्की के बारे में सोचना चाहिए कि जब धरती ही नहीं बचेगी तो विकास का क्या होगा।
सुंदर रचना... सुंदर आह्वान.
वाकई......सही विषय उठाया है..
सटीक रचना-बेहतरीन आह्वान.
ह्रदय से धन्यवाद आप सब को.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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