ये महज़ उत्तेजना की बात है
लोग कहते हैं अंधेरी रात है
तमन्ना-ए-रोशनी हम क्या करें
अंधेरों की हर तरफ़ ज़मात है
कागजों में बोलता निर्माण है
फाइलों में व्यवस्था की बात है
जाने दरिया आज क्यों मगरूर है
ज़ुदा क़तरा देखिए बेबात है
बन रहे हैं महल ख़्वाबों के कई
हकीक़त में सिर्फ़ वह ज़ज्बात है
आँसुओं की धार बहने जब लगी
लोग कह बैठे कि यह बरसात है
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Wednesday, September 17, 2008
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7 comments:
क्या बात है!
तभी मैं कहूं कि कल शाम से छत्तीसगढ़ सराबोर क्यों हैं। ;)
जाने दरिया आज क्यों मगरूर है
ज़ुदा क़तरा देखिए बेबात है
जैन साहेब क्या कहने...वाह...नेट से दूर रहने का सबसे बड़ा नुक्सान ये हुआ की आप की अद्भुत रचनाओं का रस पान ना कर सका...अभी भी बड़ी मुश्किल से नेट चला है और उसका भरोसा देश के नेताओं की तरह अनिश्चित है..
नीरज
सही कहा आपने
क्यों की भावाला लापता है.
जरा इसे भी दे
http://qatraqatra.yatishjain.com/?p=25
एक और खुबसूरत रचना !
बहुत सुंदर....
ज़ुदा क़तरा देखिए बेबात है
बन रहे हैं महल ख़्वाबों के कई
हकीक़त में सिर्फ़ वह ज़ज्बात है
आँसुओं की धार बहने जब लगी
लोग कह बैठे कि यह बरसात है
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
Rachna achhi lagi
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