Friday, September 19, 2008

परिवर्तन देखा है...!

मैंने अकस्मात जीवन में यह परिवर्तन देखा है।
प्रातः चंद्र अस्त हो जाना
रश्मि-प्रभाकर का छा जाना
कलियों का दम भर मुस्काना
सूर्य-तेज से मुरझा जाना
निशा निमंत्रण भी देखा और संध्या-वंदन देखा है।
शीतल समीर का बहते जाना
क्षण भर हँसना, मन भर गाना
कभी आँधियों का उठ जाना
सुख, दुःख में परिणत हो जाना
नियति नटी का सच कहता हूँ मैंने नर्तन देखा है।
मोह-मूढ़ यह तन जीता है
खोकर सुध-बुध मन जीता है
अमित लालसा ले अमृत की
पथ में प्रति पल विष पीता है
व्यर्थ सुखों के बीच विफलता का अभिनंदन देखा है।
===================================

6 comments:

Anil Pusadkar said...

अच्छी रचना

रंजू भाटिया said...

मोह-मूढ़ यह तन जीता है
खोकर सुध-बुध मन जीता है
अमित लालसा ले अमृत की
पथ में प्रति पल विष पीता है
व्यर्थ सुखों के बीच विफलता का अभिनंदन देखा है।

बहुत खूब .सही कहा आपने

शोभा said...

मैंने अकस्मात जीवन में यह परिवर्तन देखा है।
प्रातः चंद्र अस्त हो जाना
रश्मि-प्रभाकर का छा जाना
कलियों का दम भर मुस्काना
सूर्य-तेज से मुरझा जाना
निशा निमंत्रण भी देखा और संध्या-वंदन देखा है।
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवाह...
बहुत बढ़िया कहा आपने..
निरन्तरता बनाए रखें....
साधुवाद..

Udan Tashtari said...

सभी देख रहे हैं यह परिवर्तन बस साक्षीभाव से-और कुछ नहीं...आपने सुन्दर शब्द दिए.बेहतरीन रचना.

Abhishek Ojha said...

देखते सभी है पर ऐसा बयां कहाँ कर पाते हैं ! अच्छी रचना