कविता में जीवन के ताप और
विकल मन की वेदना को
मर्मस्पर्शी दृश्य-चित्रों के ज़रिये
सम्पूर्ण अर्थगांभीर्य के साथ वाणी देने वाले
श्री मंगलेश डबराल की यह कविता
ह्रदय के अतल को छू गई।
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आप भी पढ़िये -
अकेला आदमी
===========
अकेला छोड़ दो मुझे
हर बार अकेला आदमी चिल्लाता है
एक गहरी रात में
संसार को अपने रक्त में अस्त होते देखता
अकेला आदमी बुदबुदाता है अपनी आख़िरी थकान
अपनी छत पर अपने क्रोध में टहलते हुए
हाँफते पैंट कसते बार-बार गले से
एक अश्लील घरघराहट सुनते हुए अकेला आदमी हो चुका है
बिना कुछ किए-धरे होते रहने से परेशान
एक गहरी रात में जब चीजें
ठीक उस ज़गह चली जाती हैं जहाँ से
उनका जन्म हुआ था
अकेला आदमी ठंडे बिस्तरे से
उठकर रोने लगता है
क्या करुँ कहाँ जाऊँ किस रास्ते पर
किस दोस्त के यहाँ क्या कहूँ
कूच करने से पहले सारा कुछ कह दूँगा एक बार
अकेला आदमी सीडियाँ उतरकर
बाहर आता है हवा में आते-जाते मौसमों में
बदबूदार गलियों और झील जैसी शामों में
बच्चों में जो देखते ही देखते क्रूर हो जायेंगे
आकाश के नीचे अपने अकेले बिस्तर को
याद करता हुआ अकेला आदमी
टहलता है सुनसान में सड़कों पर
मृत्यु की तरह व्याप्त प्रकाश में अपने अंधकार को
छाते की तरह ताने हुए अकेला आदमी
गुज़रता है चीजों के बीच से।
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विकल मन की वेदना को
मर्मस्पर्शी दृश्य-चित्रों के ज़रिये
सम्पूर्ण अर्थगांभीर्य के साथ वाणी देने वाले
श्री मंगलेश डबराल की यह कविता
ह्रदय के अतल को छू गई।
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आप भी पढ़िये -
अकेला आदमी
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अकेला छोड़ दो मुझे
हर बार अकेला आदमी चिल्लाता है
एक गहरी रात में
संसार को अपने रक्त में अस्त होते देखता
अकेला आदमी बुदबुदाता है अपनी आख़िरी थकान
अपनी छत पर अपने क्रोध में टहलते हुए
हाँफते पैंट कसते बार-बार गले से
एक अश्लील घरघराहट सुनते हुए अकेला आदमी हो चुका है
बिना कुछ किए-धरे होते रहने से परेशान
एक गहरी रात में जब चीजें
ठीक उस ज़गह चली जाती हैं जहाँ से
उनका जन्म हुआ था
अकेला आदमी ठंडे बिस्तरे से
उठकर रोने लगता है
क्या करुँ कहाँ जाऊँ किस रास्ते पर
किस दोस्त के यहाँ क्या कहूँ
कूच करने से पहले सारा कुछ कह दूँगा एक बार
अकेला आदमी सीडियाँ उतरकर
बाहर आता है हवा में आते-जाते मौसमों में
बदबूदार गलियों और झील जैसी शामों में
बच्चों में जो देखते ही देखते क्रूर हो जायेंगे
आकाश के नीचे अपने अकेले बिस्तर को
याद करता हुआ अकेला आदमी
टहलता है सुनसान में सड़कों पर
मृत्यु की तरह व्याप्त प्रकाश में अपने अंधकार को
छाते की तरह ताने हुए अकेला आदमी
गुज़रता है चीजों के बीच से।
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4 comments:
मंगलेश डबराल जी की कविता अकेला आदमी पढ़कर अच्छा लगा। अच्छी कविता हमारे साथ शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद ।
आप का बहुत बहुत धन्यवाद मंगलेश डबराल जी की कविता (अकेला आदमी ) आप ने हमारे साथ बांटी
शानदार कविता। धन्यवाद
मृत्यु की तरह व्याप्त प्रकाश में अपने अंधकार को
छाते की तरह ताने हुए अकेला आदमी
गुज़रता है चीजों के बीच से।
वाह
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