Saturday, November 1, 2008

खुशी की राहें...!

ख़ुशी की राहें

ग़मगीन का साथ छोड़ देती हैं

ग़म की आंधी

खुशी की राहों को मोड़ देती है

हो साफ़ दिल तो

छल-कपट की बात भी क्यों हो

मतलब परस्ती

दिल का रिश्ता तोड़ देती है

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14 comments:

अजित वडनेरकर said...

सच्ची बात

Abhishek Ojha said...

बहुत खूब !

sandhyagupta said...

Bahut achche.

guptasandhya.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

सही है भाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

रिश्ता दिल का हो तो मतलब परस्ती कहाँ होगी। कुछ रिश्ते में ही गड़बड़ होगी।

राज भाटिय़ा said...

मतलब परस्ती

दिल का रिश्ता तोड़ देती है
बिलकुल सही लिखा आप ने,
धन्यवाद

Alpana Verma said...

sach likha hai.

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब आप के ब्लॉग पर आयें और बिना कुछ सीख लिए चले जायें ऐसा कभी नहीं हुआ...इस बार भी....हमेशा की तरह प्रेरक रचना...
नीरज

Smart Indian said...

मतलब परस्ती दिल का रिश्ता तोड़ देती है
बहुत खूब!

Udan Tashtari said...

वाह जैन साहब, बहुत बढ़िया!!

समीर यादव said...

बढ़िया...जैन जी, छत्तीसगढ़ की महक है.

महेंद्र मिश्र.... said...

sach hai . badhiya rachana .

RADHIKA said...

बहुत ही अच्छी रचना

रंजना said...

Waah ! ekdam satya kaha.bahut sundar