सुख-दुःख के दो तार जुड़े हैं
जीवन विद्युत-धारा है
एक तार से बोलो कैसे
हो सकता उजियारा है !
सागर में भी भाटा आता
और कभी आता है ज्वार
उत्थान-पतन के बीच यहाँ
पाता हर मनुज सहारा है !
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Tuesday, November 18, 2008
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5 comments:
वाह ! बहुत सुन्दर व सटीक लिखा है ।
घुघूती बासूती
bahut sahi likha hai.
sundar rachan.
yahi hai Jeevan!
सार्थक!
bahut sundar
जीवन विद्युत-धारा है
एक तार से बोलो कैसे
हो सकता उजियारा है !
अद्भुत भाव....जय हो जैन साहेब आपकी....क्या लेखन है...वाह...
नीरज
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