आदरणीय डा. सा. यह जिंदिगी का बल्ब कब फ्यूज हो जाए कोई भरोसा नहीं है इसीलिए संत - महात्माओ ने कहा है कि मरने से पहले अपने कर्मो का हिसाब देने के लिए इतने पुण्य जरुर अर्जित कर लो कि जब मृत्यु आवें तो घबराना नहीं पड़े तभी हम मृत्यु को मातम के रूप में न मनाकर , महोत्सव के रूप में मना पावेंगे / मुनि श्री विमर्श सागर जी की ये पंक्तिया याद आती है कि - '' जीवन है पानी की बूंद , कब मिट जावे रे होनी अनहोनी कब क्या घाट जावे रे '' / मेरे ब्लॉग पर पधारने का कष्ट करें /
5 comments:
bahot khub sahab jivan mulyon ke bare me badhiya abhibyakti di hai aapne . bahot hi umda bat chhoti si kavita ke madhyam se.... dhero badhai aapko...
ये अंदाज़ भी पसंद आया डाक्टसाब....
बहुत खूब...
waah bahut khub
आदरणीय डा. सा. यह जिंदिगी का बल्ब कब फ्यूज हो जाए कोई भरोसा नहीं है इसीलिए संत - महात्माओ ने कहा है कि मरने से पहले अपने कर्मो का हिसाब देने के लिए इतने पुण्य जरुर अर्जित कर लो कि जब मृत्यु आवें तो घबराना नहीं पड़े तभी हम मृत्यु को मातम के रूप में न मनाकर , महोत्सव के रूप में मना पावेंगे / मुनि श्री विमर्श सागर जी की ये पंक्तिया याद आती है कि - '' जीवन है पानी की बूंद , कब मिट जावे रे होनी अनहोनी कब क्या घाट जावे रे '' / मेरे ब्लॉग पर पधारने का कष्ट करें /
डाक्टर साहब, कमाल की बात सहज कह दी है।
मेरा निवेदन कब मंजूर होगा?
कविता का फोंट साइज बड़ा कर दें।
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