कर भू को सकल समर्पण !
बिन्दु बन गया सिन्धु मिटाके
अहंभाव का तर्पण !!
रज कण ने खोया अपने को
तब धरती कहलाया !
विरल समझ पाते अर्पण का
गहन बहुत है दर्शन !!
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बहुत गहरी बात कही आपने डाक्साब्।
गहरी और सुंदर रचना है। एक सुझाव है, आप की रचनाएँ छोटी होती हैं। यदि इन का फोन्ट साइज ब़ड़ा कर दें तो सुंदर लगेगा। पढ़ने में भी आसानी होगी।
बहुत ही सुंदर ओर गहरी सोच लिये आप की कविता.धन्यवाद सुंदर कविता के लिये
गागर में सागर.
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4 comments:
बहुत गहरी बात कही आपने डाक्साब्।
गहरी और सुंदर रचना है। एक सुझाव है, आप की रचनाएँ छोटी होती हैं। यदि इन का फोन्ट साइज ब़ड़ा कर दें तो सुंदर लगेगा। पढ़ने में भी आसानी होगी।
बहुत ही सुंदर ओर गहरी सोच लिये आप की कविता.
धन्यवाद सुंदर कविता के लिये
गागर में सागर.
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