आतंक का होता नहीं,
जांबाज़ है जो मुल्क़ वह
सोता नहीं, रोता नहीं।
रटने से कोई पाठ होती
शान्ति की स्थापना,
सोचें जरा यह काम
कर लेता कोई तोता नहीं!
यह वक़्त है कि चुनौती को
एक होकर समझिए,
आँखों के आगे धुंधलके में
अब न ज़्यादा उलझिए।
ऐ देश ! निर्दोषों की
निर्मम मौत मत तुम देखना,
बुज़दिल करें हमला अगर
घुटने कभी मत टेकना।
वीरों की धरती जानती है
राष्ट्र का क्या धर्म है,
जिससे सँवरता देश वह
केवल यहाँ सत्कर्म है।
सब मिल सुरक्षा के लिए
संग्राम का प्रण जब करें,
तब सच कहूँ कोई बड़ा
होता कोई छोटा नहीं,
जांबाज़ है जो मुल्क़ वह
सोता नहीं, रोता नहीं।
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7 comments:
ये देश है वीर जवानो का।
जांबाज़ है इसी लिए न वो सोता है न रोता है, सिर्फ मरता है!!!!!!!
बढिया सामयिक रचना है।
रटने से कोई पाठ होती
शान्ति की स्थापना,
सोचें जरा यह काम
कर लेता कोई तोता नहीं!
क्या बात कही है जैन साहेब ...वाह...बेहतरीन रचना...
नीरज
दिल्ली में बैठे कुटिल सियार
कराची से आये कायर
और हम है बेबस लाचार
जांबाज़ है जो मुल्क़ वह सोता नहीं, रोता नहीं !
धन्यवाद
मै आपके साथ हूं इस युद्ध में । देश के हिंदी गजलकार दुष्यंत ने कही कहा है..
कौन कहता है आकाश में छेद नही हो सकता,
एक पत्थर तो जरा दम से उछालों यारो ।
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