Friday, November 28, 2008

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह सोता नहीं, रोता नहीं !

अभ्यर्थना से अंत जब

आतंक का होता नहीं,

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह

सोता नहीं, रोता नहीं।

रटने से कोई पाठ होती

शान्ति की स्थापना,

सोचें जरा यह काम

कर लेता कोई तोता नहीं!

यह वक़्त है कि चुनौती को

एक होकर समझिए,

आँखों के आगे धुंधलके में

अब न ज़्यादा उलझिए।

देश ! निर्दोषों की

निर्मम मौत मत तुम देखना,

बुज़दिल करें हमला अगर

घुटने कभी मत टेकना।

वीरों की धरती जानती है

राष्ट्र का क्या धर्म है,

जिससे सँवरता देश वह

केवल यहाँ सत्कर्म है।

सब मिल सुरक्षा के लिए

संग्राम का प्रण जब करें,

तब सच कहूँ कोई बड़ा

होता कोई छोटा नहीं,

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह

सोता नहीं, रोता नहीं।

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7 comments:

Anil Pusadkar said...

ये देश है वीर जवानो का।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जांबाज़ है इसी लिए न वो सोता है न रोता है, सिर्फ मरता है!!!!!!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया सामयिक रचना है।

नीरज गोस्वामी said...

रटने से कोई पाठ होती
शान्ति की स्थापना,
सोचें जरा यह काम
कर लेता कोई तोता नहीं!
क्या बात कही है जैन साहेब ...वाह...बेहतरीन रचना...
नीरज

हरिमोहन सिंह said...

दिल्‍ली में बैठे कुटिल सियार
कराची से आये कायर
और हम है बेबस लाचार

राज भाटिय़ा said...

जांबाज़ है जो मुल्क़ वह सोता नहीं, रोता नहीं !
धन्यवाद

bijnior district said...

मै आपके साथ हूं इस युद्ध में । देश के हिंदी गजलकार दुष्यंत ने कही कहा है..
कौन कहता है आकाश में छेद नही हो सकता,
एक पत्थर तो जरा दम से उछालों यारो ।