Tuesday, December 2, 2008

जीने और जीने में फ़र्क बहुत है...!

आँखों के जालों की भाषा

पाँवों के छालों की भाषा,

देश के लिए सब कुछ देकर

मर-मिटने वालों की भाषा।

जिस दिन समझ सकेंगे

जीने और जीने फ़र्क बहुत है,

उस दिन दिल पर छा जायेगी

देश के दिल वालों की भाषा।।

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7 comments:

Anil Pusadkar said...

देश की तरक्की के लिये आप की बात हर किसी की समझ मे आना ज़रुरी है।

Ashish Khandelwal said...

यह भाषा फैले .. और फैल और सबमें बस जाए..

श्यामल सुमन said...

न सुमन के लिए न चुभन के लिए।
गीत गाता हूँ मैं अंजुमन के लिए।
मैं अमन की राह में फूल बरसाता हूँ,
मेरा हर शब्द है बस वतन के लिए।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

mehek said...

जिस दिन समझ सकेंगे

जीने और जीने फ़र्क बहुत है,

उस दिन दिल पर छा जायेगी

देश के दिल वालों की भाषा।।
ahut sahi kaha jeene aur jeene mein farak bahut hai bahut khub

Abhishek Ojha said...

सच में बहुत फर्क है !

राज भाटिय़ा said...

जिस दिन समझ सकेंगे

जीने और जीने फ़र्क बहुत है,
क्या बात है सच मै जिस दिन ....
धन्यवाद

नीरज गोस्वामी said...

काश ये भाषा जन जन की समझ में आ जाए...
नीरज