Thursday, December 11, 2008

भीतर की दौलत वाले...!

फूल की तरह खिलने वाले

गंध बाँटकर भी जीते हैं

बंद ह्रदय वाले दुनिया में

देने का रस कब पीते हैं ?

बड़ा कठिन है बाहर के

कष्टों को सहकर स्थिर रहना

पर भीतर की दौलत वाले

न रोते, न ही रीते हैं.

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4 comments:

mehek said...

पर भीतर की दौलत वाले

न रोते, न ही रीते हैं

waah sachhi baat kahi.

नीरज गोस्वामी said...

बड़ा कठिन है बाहर के
कष्टों को सहकर स्थिर रहना
पर भीतर की दौलत वाले
न रोते, न ही रीते हैं
हमेशा की तरह...विलक्षण...जिसे पढ़ते हुए हम ना कभी भी थकते हैं...
नीरज

Abhishek Ojha said...

"कष्टों को सहकर स्थिर रहना" बस वही कहना है जो नीरजजी कह गए हैं.

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब.नीरज जी की बात से सहमत है
धन्यवाद