Friday, December 12, 2008

बीत न जाए पल हाथों का...!

स्मृति में या आशाओं में
बीत न जाए पल हाथों का,
यह होता तो वह हो जाता
न हो शिकायत इन बातों का.
हर दिन उतना ही उजला है
जितना आँखों में प्रकाश है,
फ़िर क्यों पल-पल का रोना है
बीत गई काली रातों का ?
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6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut badhiyaa !sundar rachanaa hai.

mehek said...

sahi biti baaton ka kya rona,bahut khub

विवेक सिंह said...

सही कहा आपने .

अजित वडनेरकर said...

सही कहा...
जिंदगी दो दिन की है
दो दिन में हम क्या क्या करें...

कम से कम वक्त की कमी का रोना तो न रोया जाए,
काम में जुटा जाए....
शुक्रिया डाक्टसाब

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत ही प्रेरणादायी।

19Himanshu's Home said...

wah wah :)