जिस दिन अपने को पाओगे,
खोने और पाने का अन्तर
उस दिन सहज समझ जाओगे.
मत लकीर पानी पर खींचो
सच से मत तुम आँखें मींचो,
सब-कुछ से ना-कुछ बन देखो
जो कुछ हो वह रह जाओगे.
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मत लकीर पानी पर खींचोसच से मत तुम आँखें मींचो,बहुत अच्छा लिखा है ,यही सच है.लेकिन इन्सान कहाँ इतनी आसानी से इस सच को पहचान पाता है.
बहुत सटीक लिखा है। बधाई।
जैन साहब नमस्कार ,बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने , बहोत ही सटीक और सत्य को प्रर्दशित करती हुई ये कविता आपकी बहोत खूब... ढेरो बधाई आपको..अर्श
अपनी हर पहचान मिटाकर,सब-कुछ तुम ही बन जाओगे।
गहरे पानी पैठ...सबके लिए नहीं हैं ये बातेंडूब के , बूड़ के जीने वाले मनईही ऐसा कर सकते हैं....शुक्रिया डाक्टसाब
बहुत अच्छी. हम तो आपकी हर कविता के प्रसंशक हैं !
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6 comments:
मत लकीर पानी पर खींचो
सच से मत तुम आँखें मींचो,
बहुत अच्छा लिखा है ,यही सच है.
लेकिन इन्सान कहाँ इतनी आसानी से इस सच को पहचान पाता है.
बहुत सटीक लिखा है। बधाई।
जैन साहब नमस्कार ,
बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने , बहोत ही सटीक और सत्य को प्रर्दशित करती हुई ये कविता आपकी बहोत खूब... ढेरो बधाई आपको..
अर्श
अपनी हर पहचान मिटाकर,
सब-कुछ तुम ही बन जाओगे।
गहरे पानी पैठ...
सबके लिए नहीं हैं ये बातें
डूब के , बूड़ के जीने वाले मनई
ही ऐसा कर सकते हैं....
शुक्रिया डाक्टसाब
बहुत अच्छी. हम तो आपकी हर कविता के प्रसंशक हैं !
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