Saturday, December 13, 2008

खोने और पाने का अन्तर...!

अपनी हर पहचान मिटाकर

जिस दिन अपने को पाओगे,

खोने और पाने का अन्तर

उस दिन सहज समझ जाओगे.

मत लकीर पानी पर खींचो

सच से मत तुम आँखें मींचो,

सब-कुछ से ना-कुछ बन देखो

जो कुछ हो वह रह जाओगे.

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6 comments:

Alpana Verma said...

मत लकीर पानी पर खींचो

सच से मत तुम आँखें मींचो,

बहुत अच्छा लिखा है ,यही सच है.
लेकिन इन्सान कहाँ इतनी आसानी से इस सच को पहचान पाता है.

संगीता पुरी said...

बहुत सटीक लिखा है। बधाई।

"अर्श" said...

जैन साहब नमस्कार ,
बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने , बहोत ही सटीक और सत्य को प्रर्दशित करती हुई ये कविता आपकी बहोत खूब... ढेरो बधाई आपको..


अर्श

दिनेशराय द्विवेदी said...

अपनी हर पहचान मिटाकर,
सब-कुछ तुम ही बन जाओगे।

अजित वडनेरकर said...

गहरे पानी पैठ...
सबके लिए नहीं हैं ये बातें
डूब के , बूड़ के जीने वाले मनई
ही ऐसा कर सकते हैं....
शुक्रिया डाक्टसाब

Abhishek Ojha said...

बहुत अच्छी. हम तो आपकी हर कविता के प्रसंशक हैं !