गाँव में सूखा पड़ा है चुप रहो
द्वार पर भूखा पड़ा है चुप रहो
चिढ़ गया माधो से थानेदार तो
जेल में वर्षों सड़ा है चुप रहो
भूख बेकारी से बस एक आदमी
आखिरी दम तक लड़ा है चुप रहो
क़त्ल करने वाला कोई और था
कोई फाँसी पर चढ़ा है चुप रहो
बोलता था सच सदा महफ़िल में जो
कब्र में सोया पड़ा है चुप रहो
पाँव धरती पर नहीं पड़ते हैं अब
रंग सत्ता का चढ़ा है चुप रहो
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Monday, December 22, 2008
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6 comments:
वाह ! वाह ! वाह ! और क्या कहूँ..........लाजवाब....
बहुत सुंदर!
बोलता था सच सदा महफ़िल में जो
कब्र में सोया पड़ा है चुप रहो
क़त्ल करने वाला कोई और था
कोई फाँसी पर चढ़ा है चुप रहो
काफी प्रेरक बात कही है /
कठोर समसामयिक यथार्थ पर उतना ही कठोर व्यंग।
बधाई।
अच्छी कविता ,आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाये
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!
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